वादा करके वो निभाना भूल जाते हैं

वादा करके वो निभाना भूल जाते हैं,

लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं,

ऐसी आदत हो गयी है अब तो उस हरजाई की,

रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।



तडप के देख किसी की चाहत मे,

तो पता चले के इंतज़ार क्या होता है,

यु मिल जाए अगर कोई बिना तडप के,

तो कैसे पता चले के प्यार क्या होता है।



रात की गहराई आँखों में उतर आई,


कुछ ख्वाब थे और कुछ मेरी तन्हाई,

ये जो पलकों से बह रहे हैं हल्के हल्के,

कुछ तो मजबूरी थी कुछ तेरी बेवफाई।



उनसे मिलने को जो सोचों अब वो ज़माना नहीं,

घर भी कैसे जाऊं अब तो कोई बहाना नहीं,

मुझे याद रखना कहीं तुम भुला न देना,

माना के बरसों से तेरी गली में आना-जाना नहीं।

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